Kohlberg Theory of Moral Development pdf Download | कोहलबर्ग का नैतिक विकास का सिद्धांत pdf
कोहलबर्ग का नैतिक विकास का सिद्धान्त यह बहुत ही महत्वपूर्ण Topic हैं। इस सिद्धांत से हर बार 2 से 3 सवाल Exam में पूछे जाते हैं। तो से अच्छी तरह से तैयार कर लीजिए।
कोहलबर्ग का नैतिक विकास का सिद्धान्त को सार्वभौमिक सिद्धांत (Universal Ethical Principle ) भी कहा जाता हैं।
कोहलबर्ग का नैतिक विकास का सिद्धान्त पियाजे के सिद्धांत का संशोधित रूप था। उनके नैतिक विचार पियाजे के सिद्धांत से प्रभावित थे। कोहलबर्ग के अनुसार बच्चे मे नैतिकता का विकास जन्मजात नहीं बल्कि समाज द्वारा होता हैं।
कोहलबर्ग ने अलग अलग उम्र के बच्चों को हिंज और हिंजोइक की कहानी सुनाई। और सभी बच्चों से अलग अलग
तर्क के आधार पर वह अपने सिद्धान्त द्वारा दिये गए 3 अवस्थाओं के 6 चरणों में बांटा है।
हींज और हिंजोईक की कहानी:-

यूरोप में एक परिवार में हिंज और हिंज की पत्नी हिंजोइक था । एक दिन हिंज की पत्नी बीमार पर गई और वह महिला मौत के कगार पर पहुंच गई। डाक्टरों ने कहा कि एक दवाई है जिससे शायद उसकी जान बच जाए। वो एक तरह का रेडियम था जिसकी खोज उस शहर के एक चर्चित फार्मासिस्ट ने उस बीमारी की दवा बनाई थी। हिंज उस फार्मासिस्ट के पास दवाई लेने गया लेकिन दवाई बनाने का खर्चा बहुत था और दवाई वाला दवाई बनाने के खर्च से दस गुना ज्यादा पैसे मांग रहा था। उस औरत का इलाज करने के लिए हिंज बहुत लोगो के पास गया जिन्हें वह जानता था। फिर भी उसे केवल कुछ पैसे ही उधार मिले जो कि दवाई के दाम से आधे ही थे। उसने दवाई वाले से कहा कि उसकी पत्नी मरने वाली है, वो उस दवाई को सस्ते में दे दे। वह बाकी रूपये बाद में दे देगा। फिर भी दवाई वाले ने मना कर दिया। दवाई वाले ने कहा कि मैंने यह दवाई खोजी है, मैं इसे बेच कर बहुत पैसा कमाऊंगा। तब हिंज ने बहुत सोचने के बाद मजबूर होकर उसकी दुकान से वो दवाई अपनी पत्नी के ईलाज लिए चुरा ली।
यह कहानी अलग अलग उम्र के बच्चों को सुनाने के बाद गया कुछ प्रश्नों पूछे:-
- क्या हाइनज को वो दवाई चुरा लेनी चाहिए थी?
- क्या चोरी करना सही है या गलत है! क्यों?
- क्या यह एक पति का कर्त्तव्य है कि वो अपनी पत्नी के लिए दवाई चोरी करके लाए?
- क्या दवाई बनाने वाले को हक है कि वो दवाई के इतने पैसे मांगे?
- क्या ऐसा कोई कानून नहीं है जिससे दवाई की कीमत पर अंकुश लगाया जा सके, क्यों और क्यों नहीं?
कोलबर्ग ने सभी बच्चों के अलग अलग तर्क के आधार पर वह अपने सिद्धान्त को 3 अवस्थाओं को 6 चरणों में बांटा है।
हिंदी में इस अवस्था का और भी नाम होता है इसलिए इस अवस्था का नाम अंग्रेजी में याद रखने ने आसानी होती हैं।
1. पूर्व परंपरागत अवस्था (Pre- conventional stage) (4-10 वर्ष)
2. परंपरागत अवस्था (Conventional stage)- (10 -13 वर्ष)
3 उत्तर परंपरागत स्तर ( post- conventional stage) (13 वर्ष से अधिक)
स्तर 1. प्राक रूढ़िगत नैतिकता का स्तर / पूर्व पारंपरिक चरण (Pre Conventional Stage) (4 – 10 वर्ष)
इस अवस्था में नैतिकता शून्य होती है यानी कि बच्चों को सही गलत के बारे में पता नहीं होता है इस अवस्था में नैतिक तर्कणा दूसरे लोगों के मानकों के अनुसार होती है जैसे माता पिता पर।
इस अवस्था को दो भागों में बांटा गया है-
चरण 1 – दंड एवं आज्ञा पालन उन्मुखता – Punishment Obedience Orientation –
अगर नियम नहीं माने तो दंड मिलेगा।
इसमें बच्चे की नैतिकता सजा और आज्ञा पालन पर आधारित होती है बच्चों ने सोचा कि अगर हिंज ने चोरी की तो वह चोरी करेगा तो उसे सजा मिलेगी
चरण 2- साधनात्मक सापेक्षवादी उन्मुखता (Instrumental Relativist Orientation)- विनिमय या अदलाबदली का भाव
इस अवस्था को जैसे को तैसा भी कहा – जाता है क्योंकि इसमें जैसा व्यवहार कोई उसके साथ करेगा वैसा ही वह खुद भी करेगा
- जैसे – एक बच्चे ने दूसरे बच्चे की पेंसिल तोड़ी तो दूसरे बच्चे ने भी उसकी पेंसिल तोड़ दी।
- जैसे- तुम मेरी पीठ खुजाओ तो मैं भी तुम्हारी पीठ खुजाऊंगा
- तुम आज टिफिन खिलाओगै तो मैं भी कल तुझे खिलाऊंगा।
स्तर 2. रूडी गढ़ नैतिकता का स्तर / पारंपरिक चरण (10-13 वर्ष) (Conventional Stage)
इस अवस्था में बच्चा दूसरे लोगों के मानकों को अपने अंदर समावेशित कर लेता है तथा उसी के हिसाब से सही और गलत का निर्णय करता है।
इस अवस्था को भी दो भागों में बांटा गया है –
चरण 1 – अच्छा लड़का या लड़की बनने की उन्मुखता (Good boy /Good girl Orientation)
गंदे लोग चोरी करते हैं।दूसरे लोग आपको निष्कासित (Reject) कर देगा।
अच्छा बनने की कोशिश करते हैं और दूसरों को दिखाते हैं कि हम अच्छे हैं।
चरण 2 – कानून एवं व्यवस्था उन्मुखता (law and order orientation) –
सामाजिक व्यवस्था के प्रति सम्मान (Respect to Social System)- कानून का पालन करना
जैसे -चोरी करना पाप हैं तो दवाई की चोरी नहीं करनी थी।
इसमें बच्चा कानून तथा सामाजिक व्यवस्था को बनाए रखने की भावना विकसित करता है।
जैसे कि – रेड लाइट पार करते हुए उसके पिताजी का एक्सीडेंट हो गया तो आप रेड लाइट को तोड़ कर आप उसे बचाने नहीं जा सकते हैं।
स्तर 3. उत्तर रुडीगढ़ नैतिकता / उत्तर पारंपरिक चरण (Post Conventional Stage) (13 वर्ष से ऊपर)
- नैतिकता – खुद से Decide करना
- Morality सबसे High Level पार होती हैं
- इसमें निर्णय खुद से लिए जाते हैं ना कि समाज के जरिए कि क्या सही है और क्या गलत है।
इस अवस्था को भी दो भागों में बांटा गया है जो की निम्नलिखित है-
चरण 1 – सामाजिक अनुबंधन उन्मुखता (social contract orientation)-
- सामाजिक व्यवस्था और अपने (स्वयं)के अधिकारों में Balance
- कानून और नियमों का लचीलापन
- अगर नियम से नुकसान होता हैं तो नियम तोड़ दो
- इसमें किशोर यह मानते हैं कि नियम लोगों की लोगों के भले के लिए हैं अगर किसी नियम से किसी का नुकसान होता है तो ऐसे नियम को तोड़ देना चाहिए अगर रेड लाइट तोड़कर उसके पापा की जान बच सकती है तो उस नियम को तोड़ दो ।
चरण 2 – सार्वभौमिक नैतिक सिद्धांत उन्मुखता (Universal ethical principle orientation)
- स्वयं नियम बनाना
- मैं भूखा रहूं, दूसरा खा ले
- अगर चोरी नहीं करता तो कहीं अधिक मूल्य चुकाना पड़ता हैं।
- इसमें किशोर दूसरों के विचारों से नहीं बल्कि अपने खुद के मानकों के अनुसार व्यवहार करते हैं इसमें किशोर दूसरों के फायदों के लिए अपनी जान पर भी खेल जाते हैं।
लॉरेंस कोहलबर्ग के सिद्धांतों की कुछ मुख्य आलोचनाएं निम्नलिखित हैं-
- लॉरेंस कोहलबर्ग का नैतिक विकास सिद्धांत की आलोचना उसकी की छात्रा केरोल गिलिगन ने की थी ।
- संस्कृति के अंतर को नजर अंदाज किया हैं।
- Female पक्ष गौण, महिला की नैतिकता का आधार देखभाल और पुरुष की नैतिकता न्याय पर डिपेंड करता हैं।
- लॉरेंस कोहलबर्ग का नैतिक विकास सिद्धांत पुरुषों के प्रति पक्षपाती था क्योंकि उनके अध्ययन के विषय में केवल पुरुष थे महिलाएं नहीं थी।
- पुरुषों और महिलाओं की नैतिक और मनोवैज्ञानिक प्रवृत्ति अलग-अलग होती है जहां पुरुष नियमों और न्याय के संदर्भ में सोचते हैं वहीं महिलाएं देखभाल और रिश्तो पर अधिक बल देती हैं
- दूसरे शब्दों में कहें तो महिलाओ की न्याय की नैतिकता के अलावा देखभाल की नैतिकता पर आधारित होती है और पुरुष नियमों और न्याय पार।
कोहल्बर्ग ने अपनी इस कहानी के आधार पर दो प्रश्नों होते हैं जो इस प्रकार हैं-
- नैतिक दुविधा (Moral Dilemma) – सही और गलत के बीच निर्णय लेने में जिन दुविधाओं या समस्याओं का सामना करते हैं उसे ही नैतिक दुविधा (Moral Dilemma) कहा जाता हैं।
- जैसे- अगर हिंज चोरी नहीं करेगा तो उसकी पत्नी मर जाएगी और अगर उसने चोरी की तो उसको पुलिस पकड़ कर जेल में बंद कर देगी।
● नैतिक तर्कणा (Moral Reasoning) – दो विचारों के बीच सही और गलत का चयन करना।
जैसे-हिंज ने अपनी पत्नी की जान बचाने के लिए चोरी करने का फैसला लिया।
दोस्तो यह पोस्ट कैसा लगा कॉमेंट में जरूर लिखिएगा
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