Growth and Development pdf – अभिवृद्धि और विकास NCERT in Hindi

Growth and Development pdf - अभिवृद्धि और विकास NCERT in Hindi

Growth and Development pdf – अभिवृद्धि और विकास NCERT in Hindi

Growth and Development की परिभाषा –

अभिवृद्धि (Growth) – जब हमारे शरीर की संरचना या आकार बढ़ना शुरू होता है उसे वृद्धि कहते है ।

विकास (Development) – जब हमारे मानसिक, सामाजिक, संवेगात्मक तथा बौदधिक पक्षों में परिपक्वता आती है तो उसे विकास कहते है

विकास का अर्थ एवं प्रकृति

बाल विकास की अवस्थाएँ pdf download Stages of child developme
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  • विकास एक ऐसी प्रक्रिया है जो Continuous चलती है । जिसमें गुणात्मक परिवर्तन (Qualitative Change) तथा परिमाणात्मक (मात्रात्मक) परिवर्तन (Quantitative) दोनों शामिल रहते हैं।
  • गुणात्मक परिवर्तन, जैसे- शिशुओं की उम्र बढ़ने पर सांवेगिक नियंत्रण में परिवर्तन, विशेष भाषा को सीखने की क्षमता में परिवर्तन आदि ।
  • परिमाणात्मक परिवर्तन; जैसे- शरीर का कद बढ़ना, वजन बढ़ना, बनावट में परिवर्तन आदि से है।
  • विकास संपूर्ण अभिवृद्धियों का संगठन है। शरीर के विभिन्न शारीरिक, मानसिक तथा व्यावहारिक संगठनों को विकास कहते हैं।
  • विकास होने पर हम सामान्य से जटिल की और आगे बढ़ते हैं।

अभिवृद्धि (Growth) और विकास (Development) में अंतर

अभिवृद्धि (Growth)

  • वृद्धि का स्वरुप बाह्य होता है।
  • वृद्धि कुछ समय के बाद रुक जाती है। उदहारण:- लम्बाई, चौड़ाई
  • वृद्धि क्रम के अनुसार नहीं चलती उदहारण:- कभी हमारी लम्बाई बढ़ती है तो कभी हमारा भार बढ़ता है।
  • वृद्धि का हम मापन (Measurement) कर सकते हैं
    उदाहरण: हम भार, लम्बाई को नाप सकते है।
  • वृद्धि केवल परिमाणात्मक होती है।
  • वृद्धि होने से विकास हो भी सकता है और नहीं भी । उदहारण: जब कोई आदमी मोटा होता जा रहा है तो उसकी वृद्धि हो रही है परन्तु ये जरुरी नही कि मोटा होने से उसका क्रियात्मक विकास भी बढ़े।

विकास (Development)

  • विकास का स्वरुप आंतरिक एवं बाह्य दोनों होता है।
    उदहारण: मस्तिष्क, भाषाज्ञान,
  • विकास जीवन भर चलता रहता है।
  • विकास में निष्चित क्रम होता है। उदहारण:- हमे अपना जितना विकास करना होता है उतना हो जाता है। मानसिक विकास, सामाजिक विकास जितना हम चाहेंगे उतना ही होगा
  • विकास का हम सीधे सीधे मापन नही कर सकते । उदहारण: हम सामाजिक विकास, नैतिक विकास का मापन नही कर सकते हम केवल मानसिक विकास का मापन कर सकते है ।
  • विकास परिमाणात्मक और गुणात्मक दोनों होता है
  • विकास वृद्धि के बिना भी संभव है। क्योंकि कुछ व्यक्तियों का आकार, ऊँचाई या भार नही बढ़ता परन्तु उनमे नैतिक विकास, सामाजिक विकास, बौद्धिक विकास अवश्य होता है।

परिपक्वता (Maturation) :- अनुवांशिक विन्यास (genetic desposition) के पूर्व निर्धारित रूप से प्रकट होने का process maturation कहलाता है

• यह heredity से related होता है
बड़े होने पर maturity आती रहती है।

विकास के आयाम (Domain of development) या मानव विकास के विभिन्न पक्ष (Various Domains ofDovelopment)

विकास :- विकास बहुआयामी (multidimensional) होता और multidirection में होता है ।

मानव के वृद्धि व विकास के महत्त्वपूर्ण पक्ष निम्न हैं-

1. शाररिक विकास (physical development)

2. गत्यात्मक विकास (motor development) – यह एक तरह से बालक के शाररिक विकास से ही जुड़ा है। यह muscles, हडियो की क्षमता और उन control करने से सम्बंधित होता है।

• गत्यात्मक विकास या गामक विकास में बालको के चलने, दौड़ने, कूदने, भोजन करने आदि विषय को शामिल किया गया है ।

इसे दो भागो में बांटा गया है :-

Fine Motor Skill And Gross Motor Skill

Fine motor skills- इसमें muscles का कम use होता है

Examples -writing, coloring ,cutting ,breaking chapati etc

Gross Motor Skills :- इसमें muscles का ज्यादा use होता है

Examples- Swimming, Jumping ,Running , kicking football, etc.

3.मानसिक विकास / संज्ञानात्मक विकास (mental / cognitive development)

4. सामाजिक विकास (social development)

5. सांवेगिक विकास (Emotional Development)

6. नैतिक विकास (Moral Development)

7. भाषा विकास (Language Development)

हरलॉक के अनुसार :- विकास, वृद्धि तक ही सीमित नहीं है। इसकी अपेक्षा, इसमें परिपक्वावस्था के लक्ष्य की ओर, परिवर्तनों का प्रगतिशील क्रम भी निहित रहता है। विकास के परिणामस्वरूप व्यक्ति में नई-नई विशेषताएँ और नई नई योग्यताएँ प्रकट होती हैं।

सोरेन्स के अनुसार :- विकास एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है। मनुष्य जाति के शिशुओं के विकास का प्रतिमान एक-सा है। लेकिन उनके विकास की गति में भिन्नता होती है। यह विकास की गति सामान्य से विशिष्ट की ओर ले जाती है। विकास सदा एकीकृत होता है। विकास शरीर के विभिन्न अंगों की कार्यक्षमता को इंगित करता है। विकास शरीर की अनेक संरचनाओं तथा कार्यों को संगठित करने तथा कार्यपरक बनाने की जटिल प्रक्रिया है। यह वह प्रक्रिया है जिसमें आंतरिक शरीर रचना सम्बन्धी परिवर्तन तथा इनसे उत्पन्न मनोवैज्ञानिक प्रक्रियाएँ एकीकृत होकर व्यक्ति को सरलता, सहजता व मितव्ययता के साथ कार्यसक्षम बनाती है।

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